है क़ैद जो लब, लफ़्हज़ों पर तेरे जो पहरा है, क्यों तू इतना चुप सा गुमसुम है, क्या ज़ख्म इतना गहरा है ??



है क़ैद जो लब, लफ़्हज़ों पर तेरे जो पहरा है, क्यों तू इतना चुप सा गुमसुम है, क्या ज़ख्म इतना गहरा है ??:


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