मत पूछो मेरे सबर का इन्तेहाँ कान्हा तक है, तू सितम करले तेरी ताकत जहाँ तक है, वफ़ा की उम्मीद जिन्हें होगी, उन्हें होगी, हमें तो देखने है, तू जालिम कहाँ तक है.

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